सतधारा स्तूप हलाली नदी के किनारे करीब 28 एकड़ जमीन पर फैले लगभग 29 बौद्ध स्तूप के आलावा और २ विहार है जो की सम्राट अशोक कालीन बताया जाते हैं। इनमें से कुछ स्तूप आधे अधूरे हैं और कुछ स्तूप अच्छी तरह से बने हैं। सतधारा स्तूप विदिशा भोपाल राजमार्ग में स्थित है और सांची से १७ किमी पश्चिम में स्थित है। सतधारा मतलब सात धाराओं को समूह। यहाँ बने स्तूप लगभग २५०० साल पुराने है, १३ मीटर तक ऊंचे है, यह हजारों साल पुराने होने के कारण जर्जर हो चुके हैं जबकि कहीं को जीर्णोद्धार के जरिए पुनर्जीवित किया जा रहा है। यहां करीब 4 से 7 ईसवी पुरानी बुद्ध की रॉक पेंटिंग है। यहाँ चारों ओर जंगल की हरियाली छाई रहती है, यहाँ चारों तरफ कई नक्काशी युक्त शिलाखंड जो स्तूप के ही भाग बिखरे पड़े है। सुरम्य और शांत वातावरण में पहाड़ी पर स्थित सतधारा की ऊंचाई से हलाली नदी की खूबसूरती देखते ही बनती है। ईंटों से निर्मित यह स्तूप अपने रंग के कारण दूर से दिखाई दे जाता है। क्रमांक 1 सबसे ज्यादा आकर्षित करता है
मुख्य स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के काल (3 री सदी ईसा पूर्व) में बड़े ईंटों से बनाया गया था. 400 वर्ष पश्चात ऊपर पत्थरों से मढ़ा गया था जो अब नहीं रहा. खुदाई में मिट्टी के पात्रों के टुकड़े मिले हैं जिनको 500 – 200 वर्ष ईसा पूर्व का माना गया है. बौद्ध शैल चित्र भी मिले हैं जिन्हें चौथी से सातवीं सदी के बीच का समझा गया है.
यहां कई स्तूप हैं जिन्हें मौर्य कालीन माना जाता है। इन स्तूपों में स्तूप क्रमांक 1 हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। ईंटों से निर्मित यह स्तूप अपने रंग के कारण दूर से दिखाई दे जाता है। गहरे भूरे रंग के इस स्तूप के आधार के चारों ओर एक व्यापक परिक्रमा पथ है। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच का इस स्तूप का भ्रमण करना वास्तव में बेहद शांतिपूर्ण अनुभव है। वहां एक स्तूप के अंदर अवशेष का पत्थर का प्रतिरूप भी रखा हुआ है। कहा जाता है कि इस स्थान को 1853 में खोजा गया था।
स्तूपों को एक बौद्ध रेलिंग द्वारा ताज पहनाया गया था, जिनमें से कई स्तंभ अभी भी बिखरे पड़े हुए हैं। वर्गाकार आसन के कुछ स्तंभ भी बने हुए हैं। वे पूर्ण और आधे कमल के फूलों के सामान्य पदकों से अलंकृत थे।
सतधारा के शेष स्तूप अब केवल पत्थर के घेरे जैसे हैं, उनमें से अधिकांश 20 फीट व्यास के हैं। उनमें से दो मध्य भाग में खोखले हैं, और उनमें पेड़ हैं।
सर एलेग्जेंडर कनिंघम ने स्तूप नंबर दो को तोड़कर उस में प्रवेश किया था जिन्हें खुदाई में मिट्टी के पात्र के टुकड़े मिले तथा बुद्ध के परम शिष्य सारिपुत्र और महा मोद्गगलायन के अस्थि अवशेष मिले थे जिन्हें ब्रिटिश म्यूजियम ले जाया गया था