स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे विशिष्ट स्मारक है। प्राकृत में स्तूप को थुब कहते हैं। कई शिलालेखों में स्तूप को थुब कहा गया है। स्तूप एक अर्द्धाकार टीला या गुंबद के आकार की स्मारक संरचना है जिसे पवित्र बौद्ध अवशेषों (बुद्ध की अस्थियाँ) और अन्य पवित्र वस्तुओं को स्मृति स्वरूप संरक्षित रखने के लिए बनाया गया है। पहले बौद्ध स्तूप मूल रूप से बुद्ध के अवशेषों को रखने के लिए बनाए गए थे। स्तूप को बुद्ध के महा-परिनिर्वाण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। मौर्य शासक सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों पर बड़ी संख्या में स्तूप बनाए थे। अशोक ने अपने काल में लगभग 84000 स्तूपो का निर्माण किया था। मूल रूप से बुद्ध के महा-परिनिर्वाण के बाद आठ स्तूपों का निर्माण किया गया था, जैसे अजातशत्रु ने राजगृह में, शाक्यो ने कपिलवस्तु में, बुलायो ने अल्लकप्पा में, कोलीयो ने रामग्राम में, मल्लो ने पावा में, लिच्छवीयो ने वैशाली में, मल्लो ने कुशीनगर में, तथा वेथादिपा और पिप्पलीवन में स्तूपों का निर्माण किया गया था। बौद्ध अनुयायी विभिन्न कारणों से स्तूपों के दर्शन करने आते हैं। कोई आशीर्वाद मांगता है, या कोई जरूरतमंद के लिए प्रार्थना करने आता है। स्तूप के दर्शन करते समय, ध्यान के रूप में इसके के चारों ओर दक्षिणावर्त प्रदिक्षणा करने का रिवाज है। भारत में पुरातत्वविदों ने देखा है कि कई प्रारंभिक बौद्ध स्तूप यह पूर्व-ऐतिहासिक और महापाषाण कालीन स्थल पर पाए गए हैं, इसमें सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े स्थल भी शामिल हैं।
स्तूप के प्रकार-
1) शारीरिक स्तूप – यह प्रमुख स्तूप होते हैं जिसमें बुद्ध और अन्य धार्मिक व्यक्तियों के अवशेष जैसे की शरीर की अस्थि, केश और दंत आदि को रखा जाता हैं, जैसे सांची स्तूप में भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे।
2) परिभोगिका (वस्तु) स्तूप – इस प्रकार के स्तूपों में महात्मा बुद्ध या उनके शिष्यों द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं जैसे— भिक्षापात्र, चीवर, पादुका आदि को रखा जाता था जैसे मुंबई के सोपारा स्तूप तथागत के भिक्षा पात्र पर बना हैं।
3) उद्देशिका (स्मारक) स्तूप – इस प्रकार के स्तूपों का निर्माण बुद्ध और उनके शिष्यों के जीवन से जुड़ी घटनाओं की स्मृति से जुड़े स्थानों पर किये गए थे अथवा उनकी यात्रा से पवित्र हुए स्थानों पर निर्मित किए गए थे, जैसे की बुद्ध के जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन तथा निर्वाण से सम्बन्धित स्थान जिसमें धम्मचक्क पवत्तन स्तूप सारनाथ और बुद्धत्व स्तूप बोधगया आते हैं।
4) प्रतीकात्मक स्तूप – प्रतीकात्मक स्तूप वे हैं जो बौद्ध दर्शन के विविध पक्षों को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त करते हैं जैसे शांति स्तूप, लेह जैसे जहाँ बौद्ध धर्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं के प्रतीक के लिए बनाए गए हैं।
5) मनौती (मन्नत) स्तूप – यह मूल स्तूप का एक छोटासा प्रतिरूप होता है, मन्नत स्तूपों का निर्माण यात्राओं या श्रद्धालुओ के द्वारा बुद्ध की श्रद्धा में किया जाता है और इसे धातु, पत्थर, कांच आदि से बनाया जा सकता है।
स्तूप की संरचना –
छत्रावली, यष्टि, हारमिका, अंडा, मेधी, प्रदक्षिणा-पथ, वेदिका
स्तूप एक ठोस संरचनात्मक गुंबद (अंडा) होता हैं, जिसे आमतौर पर एक या एक से अधिक छतों तक उठाया जाता हैं और उसके ऊपर उठा हुआ एक जालीदार मंडप (हरमिका) होती हैं, और जिसके ऊपर छत्री होती हैं। स्तूपों में एक या एक से अधिक परिक्रमा मार्ग (प्रदक्षिणा-पथ) होते हैं जो आमतौर पर एक रेलिंग (वेदिका) से घिरे होते हैं।

प्राचीन भारत में स्तूप वास्तुकला का विकास


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